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ग़ज़ल
ज़माना क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन को भूल न जाए
किसी के हल्क़ा-ए-गेसू में वो कशिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
कुछ और क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन सुना वाइ'ज़
कि इस ख़याल से तस्कीन पा रहा हूँ मैं
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
कोई जब छेड़ता है क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन 'क़ैसर'
तो दीवानों को उन की ज़ुल्फ़ के ख़म याद आता है
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ब-शक्ल-ए-क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन न हो मशहूर
वो इक फ़साना-ए-ग़म तुम ने जो सुना भी नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमें भी क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन से निस्बत है
फ़क़ीह-ए-शहर से कह दो नज़र मिला के चले
अमीन राहत चुग़ताई
ग़ज़ल
हक़्क़-ओ-बातिल का 'असर' मिटने लगा जब इम्तियाज़
ताज़ा होगा क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन समझा था मैं
असर लखनवी
ग़ज़ल
वज़' कर के आस्तान-ए-यार पर मरने के ढंग
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन को बे-मज़ा मैं ने किया
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
पस-ए-ख़ुम बैठ कर 'एहसान' को कुछ सोच लेने दे
छिड़ा है मय-कदे में क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन साक़ी
एहसान दरबंगावी
ग़ज़ल
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन या क़िस्सा-ए-गेसू-ओ-क़द
कुछ तो छेड़ो वक़्त भी है रंग पर महफ़िल भी है
राही शहाबी
ग़ज़ल
गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार-ए-मुजाहिद बे-असर हो जब
तो उस को क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन कहना ही पड़ता है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन ख़त्म न फ़रमाएँ हुज़ूर
कुछ अभी हक़ के परस्तार नज़र आते हैं
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
ग़ज़ल
हर तरफ़ से इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में जाऊँगा
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन का मरहला तो एक है