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ग़ज़ल
सौदा हुआ है जिस को रुख़-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का
क्या ख़ौफ़ उस को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
अब तो मुक़ाबला है रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-यार में
है फ़स्ल का मुबाहिसा लैल-ओ-नहार में
नवाब नजीर अल दोला
ग़ज़ल
बे-रवी ओ ज़ुल्फ़-ए-यार है रोने से काम याँ
दामन है मुँह पे अब्र-ए-नमत सुब्ह-ओ-शाम याँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़-ओ-रुख़-ए-यार तिरी शो'बदा-बाज़ी
महमूद सा फ़ातेह भी है मफ़्तूह-ए-अयाज़ी
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
गले से दिल के रही यूँ है ज़ुल्फ़-ए-यार लिपट
कि जूँ सपेरे की गर्दन में जाए मार लिपट
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कभी शाम-ए-हिज्र गुज़ारते कभी ज़ुल्फ़-ए-यार सँवारते
कटी उम्र अपनी क़फ़स क़फ़स तिरी ख़ुशबुओं को पुकारते
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
हमारा दिल वो गुल है जिस को ज़ुल्फ़-ए-यार में देखा
जो ज़ुल्फ़ें हो गईं बरहम गले के हार में देखा
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
क़िस्सा तो ज़ुल्फ़-ए-यार का तूल ओ तवील है
क्यूँकर अदा हो उम्र का रिश्ता क़लील है