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ग़ज़ल
कितने कानों के वो कच्चे हैं कि अल्लाह की पनाह
क्या रक़ीबों की बन आई है इलाही तौबा
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इलाही दर्द-ए-ग़म की सरज़मीं का हाल क्या होता
मोहब्बत गर हमारी चश्म-ए-तर से मेंह न बरसाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
मैदान-ए-कार-ज़ार में 'अख़्तर' कभी भी मैं
ख़ौफ़-ए-सिनान-ए-ज़िल्ल-ए-इलाही न लाऊँगा
अख़्तर शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
सैर की क़ुदरत-ए-ख़ालिक़ की बुताँ में 'सौदा'
मुश्त भर ख़ाक में जल्वा है भला क्या क्या कुछ