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ग़ज़ल
हो न हो तू ने ही काटी है ज़ुबाँ-ए-जहल 'यास'
दूसरा तेरे सिवा इस फ़न का माहिर कौन था
नूर मोहम्मद यास
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
है सौ अदाओं से उर्यां फ़रेब-ए-रंग-ए-अना
बरहना होती है लेकिन हिजाब-ए-ख़्वाब के साथ