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ग़ज़ल
'मख़फ़ी' क़ज़ा ने राह में हम को मिटा दिया
अंदेशा-ए-दराज़ी-ए-मंज़िल नहीं रहा
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
ग़ज़ल
जला कर रख दिया है उस ने शहर-ए-आरज़ू मेरा
तिरा दरबान असली वारिस-ए-चंगेज़ है साक़ी
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
अब्दुल अलीम आसि
ग़ज़ल
जादा-ए-राह-ए-मोहब्बत की दराज़ी मत पूछ
मंज़िल-ए-शौक़ का हर ज़र्रा बयाबाँ निकला
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
वोहीं फिर दरबार-ए-शाह-ए-हिन्द में रख कर क़दम
नाचने गाने लगी हँस हँस ब-ज़ेबाई बसंत