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ग़ज़ल
मिरी सोचों में यूँ रच बस गए हैं शबनमी मौसम
तवातुर से तह-ए-मिज़्गाँ नमी मौजूद रहती है
इस्लाम उज़्मा
ग़ज़ल
मैं तेरे ज़ेहन में रच बस गया हूँ मिस्ल-ए-ख़याल
जिधर भी जाएगा तू मेरा सामना होगा