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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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गर्द-ए-रह बन कर फ़क़त इक हम सफ़र के हो गए

मंज़र सुहैल

गर्द-ए-रह बन कर फ़क़त इक हम सफ़र के हो गए

मंज़र सुहैल

MORE BYमंज़र सुहैल

    गर्द-ए-रह बन कर फ़क़त इक हम सफ़र के हो गए

    राहें थीं लाखों मगर इक रहगुज़र के हो गए

    रोएँ रोना किस लिए हम अपनी तन्हाई का अब

    अब पशेमाँ क्या हों जब धोके नज़र के हो गए

    हम ने सोचा था रहोगे यूँही तुम मेरे मगर

    तुम भी औरों की तरह ही माल-ओ-ज़र के हो गए

    गाँव की कच्ची सड़क फिर याद आई तुम्हें

    शहर जा के तुम तो हमदम शहर के हो गए

    आख़िरश तुम ने भी अपने रंग दिखला ही दिए

    जिस तरफ़ दुनिया हुई तुम भी उधर के हो गए

    जिस ज़मीं पर आए थे आदम सज़ा के तौर पर

    उस ज़मीं पर किस क़द्र नख़रे बशर के हो गए

    मौज-ए-दरिया से भला अब क्या शिकायत हो मुझे

    जबकि याँ अपने सफ़ीने भी भँवर के हो गए

    एक वहदत हाथ से छूटी तो दूजी हाथ आई

    इक ख़ुदा को छोड़ कर हम इक बशर के हो गए

    अपने मोहसिन के लिए रक्खा नहीं दिल में निफ़ाक़

    राह को आँखों से चूमा राहबर के हो गए

    चिलचिलाती धूप में इस ज़िंदगी की 'सुहैल'

    जिस से भी साया मिला हम उस शजर के हो गए

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