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ग़ज़ल
वो अन-पढ़ था फिर भी उस ने पढ़े लिखे लोगों से कहा
इक तस्वीर कई ख़त भी हैं साहिब आप की रद्दी में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अपने-आप को समझाते हैं रात ढली अब तू भी सो जा
हम ही अकेले कैसे सोएँ दिल की धड़कन जाग रही है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
रद्दी काग़ज़ की क़ीमत में बच्चे उस को बेच न दें
घर में जो 'ग़ालिब' का इक दीवान बचा है ले दे कर