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ग़ज़ल
हँसी-ख़ुशी की रफ़ाक़त किसी से क्या चाहें
यहाँ तो मिलता नहीं कोई ग़म-गुसार से कम
अंबरीन हसीब अंबर
ग़ज़ल
हम कि उस हिज्र के सहरा में पड़े हैं कब से
ख़ेमा-ए-ख़्वाब-ए-रफ़ाक़त भी न हो तो क्या हो
सज्जाद बलूच
ग़ज़ल
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रिफ़ाक़त का एहसास
जब उस के मल्बूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
जब उस ने मुझ से ये कहा था इश्क़ रिफ़ाक़त ही तो नहीं
तब मैं ने हर शख़्स की सूरत मुश्किल से पहचानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुझे लम्हा-भर की रफ़ाक़तों के सराब और सताएँगे
मिरी उम्र-भर की जो प्यास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए