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ग़ज़ल
रह-रव-ए-राह-ए-मोहब्बत कौन सी मंज़िल में है
दिल है बे-ज़ार-ए-मोहब्बत और मोहब्बत दिल में है
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मैं राह-रव-ए-राह-ए-तमन्ना हूँ सितम-गर
हर ज़ख़्म पे बढ़ जाता है कुछ मेरा निशाँ और
जमील अरशद खाँ अरशद
ग़ज़ल
रह-रव-ए-राह-ए-ज़िंदगी वक़्त से तेज़ चाल चल
राहबरों को राह में फ़ुर्सत-ए-रहज़नी न दे