aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rahgiir"
हर नज़र से नजर-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँवो मदारी हूँ जो रहगीर नहीं खींच सका
वो संग-ए-मलामत था जिस को तिरा दिल कह करउस कूचे से मुझ जैसा रह-गीर उठा लाया
याद भी अब्र-ए-मोहब्बत की तरह होती हैएक साया सा चला जाता है रहगीर के साथ
राह-ए-हस्ती पे चला मौत की मंज़िल पे मिलाहम को इस राह के रहगीर पे रोना आया
गली में गिर भी सकता है कोई रह-गीर ठोकर सेदरीचे से हर इक को देखना अच्छा नहीं होता
चराग़-ए-मंज़िल-ए-फ़र्दा जलाएगा इक रोज़वो राहगीर जो तन्हा दिखाई देता है
जब नज़र आता है अपने सिवा रह-गीर कोईइक दिया और सर-ए-राह जला देता हूँ
तुझ तक भी पहुँचने के लिए वक़्त नहीं थाकब दौलत-ए-दुनिया तिरे रह-गीर उठाते
रहगीर क्यूँ तड़पते हैं तशवीश थी मुझेअब खुल गया कि झाँकते हैं चाक-ए-दर से आप
पाँव देखेगी न ताख़ीर का दुख समझेगीकैसे मंज़िल किसी रह-गीर का दुख समझेगी
ख़ाक सरगर्दां है हर सू कुछ नहीं बदला यहाँदेखती हैं अब भी राहें रास्ता रहगीर का
रहगीर सुन रहे थे ये किस जश्न-ए-नौ का शोरकल रात मेरा ज़िक्र ये किस सिलसिले में था
हम सब हैं राहगीर तसादुम का क्या सबबदुनिया है शाहराह कुछ ऐसी गली नहीं
रोज़ लड़ता हूँ मैं ख़ुद अपने ही साए के ख़िलाफ़वो शजर हूँ कि जो रहगीर नहीं खींच सका
वर्ना ज़ख़्मी कोई रहगीर नहीं हो सकताइस कमाँ-दार का ये तीर नहीं हो सकता
ख़ैरात में दे देते हैं रहगीर को जितनीउतनी भी मोहब्बत मुझे भाई नहीं देता
मंज़िल की धूम धाम से जब जी उचट गयारह-गीर जैसे सैंकड़ों रस्तों में बट गया
कूचा-ए-क़ातिल में आफ़त आ गईजब हुए दो चार भी रहगीर जम्अ'
अजनबी शहर में उल्फ़त की नज़र को तरसेशाम ढल जाए तो रह-गीर भी घर को तरसे
थकन उतार रहे थे नए सफ़र के लिएसफ़र से आए हुए राहगीर जितने थे
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