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ग़ज़ल
है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न
था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पूछ मत रुस्वाई-ए-अंदाज़-ए-इस्तिग़ना-ए-हुस्न
दस्त मरहून-ए-हिना रुख़्सार रहन-ए-ग़ाज़ा था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ उस की ख़ातिर रहन-ए-जाम करो
'मीर' के बादा-ए-ग़म-ख़ुर्दा को मय-ख़्वारों में आम करो
शाहिद इश्क़ी
ग़ज़ल
ज़माने की नई बातों में शामिल ये भी है ज़ाहिद
कि रहन-ए-मय तुम्हारा जुब्बा-ओ-दस्तार हो जाना