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ग़ज़ल
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा या'नी
इन सूराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मोहब्बत के ये आँसू हैं उन्हें आँखों में रहने दो
शरीफ़ों के घरों का मसअला बाहर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
हम ने चुप रहने का अहद किया है और कम-ज़र्फ़
हम से सुख़न-आराओं जैसी बातें करते हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो
न काम आए तो वापस दो जो काम आए तो रहने दो