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ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
इस का पहले फ़ैसला हो क़ाफ़िला क्यूँकर लुटा
ये ग़लत है रहज़न-ओ-जादा-नुमा में फ़र्क़ है
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
'ज़ैदी' तू हो तो जाता है हर ख़ुश-नवा के साथ
कुछ इम्तियाज़-ए-राहज़न-ओ-राहबर भी है
तहव्वुर अली ज़ैदी
ग़ज़ल
इसी क़दर तो है सरमाया-ए-तजस्सुस-ए-अक़्ल
कि कुछ ज़मीं की ख़बर है कुछ आसमाँ का पता
बेताब अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नक़ीब-ए-होश-ओ-'अक़्ल रख सँभल के अपना हर क़दम
ख़ुदी न काम आ सकेगी बे-ख़ुदी के शहर में