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ग़ज़ल
मिरे ताइर-ए-नफ़स को नहीं बाग़बाँ से रंजिश
मिले घर में आब-ओ-दाना तो ये दाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
पर्दा-ए-आज़ुर्दगी में थी वो जान-ए-इल्तिफ़ात
जिस अदा को रंजिश-ए-बेजा समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाकिर
ग़ज़ल
उस ने सौंपा नहीं मुझ को मिरे हिस्से का वजूद
उस की कोशिश है कि मुझ से मिरी रंजिश भी रहे
कुमार विश्वास
ग़ज़ल
उन्हीं को रंजिश-ए-बेजा है लेकिन है तो हम से है
मोहब्बत गर न हो बाहम शिकायत दरमियाँ क्यूँ हो
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
अब मैं हूँ और लुत्फ़-ओ-करम के तकल्लुफ़ात
ये क्यूँ हिजाब-ए-रंजिश-ए-बे-जा बना दिया