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ग़ज़ल
कल रात तन्हा चाँद को देखा था मैं ने ख़्वाब में
'मोहसिन' मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
कभी झूटे सहारे ग़म में रास आया नहीं करते
ये बादल उड़ के आते हैं मगर साया नहीं करते
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर
वो नज़र से छुप गए हैं मिरी ज़िंदगी बदल कर