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ग़ज़ल
क़ैद-ए-क़फ़स में हैं तो ख़िदमत है नालगी की
गुलशन में थे तो हम को मंसब था रौज़ा-ख़्वाँ का
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अब तो जोश-ए-आरज़ू 'तस्लीम' कहता है यही
रौज़ा-ए-शाह-ए-नजफ़-अल्लाह दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
तमन्ना है ये आँखों की तिरा दीदार आ देखें
कभी रौज़ा तिरा या-अहमद-ए-मुख़्तार आ देखें
अब्दुल हलीम शरर
ग़ज़ल
अब के भी रौज़ा-ए-अक़्दस पे रसाई न हुई
और फिर शूमी-ए-तक़दीर का रोना क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
आशिक़ो कूचा-ए-जानाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दूरी से तिरे कूचे के रोया आशिक़
वाँ से जब रौज़ा-ए-रिज़वान उसे लाए क़रीब
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
उस हूर के कूचे में भरे हम जो दम-ए-गर्म
मर्दुम ने कहा रौज़ा-ए-रिज़वाँ में लगी आग
मातम फ़ज़ल मोहम्मद
ग़ज़ल
याँ उस गली सा कब कोई बुस्ताँ है दूसरा
हाँ कुछ जो है तो रौज़ा-ए-रिज़वाँ है दूसरा
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
वो नौ-बहार-ए-हुस्न भी इस राह से गया
हर नक़्श-ए-पा को रौज़ा-ए-रिज़वाँ किए हुए