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ग़ज़ल
ख़तर है रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-गर्दन न हो जावे
ग़ुरूर-ए-दोस्ती आफ़त है तू दुश्मन न हो जावे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
इक रिश्ता-ए-उल्फ़त में गर्दन है हज़ारों की
तस्बीह इसे कहते हैं ज़ुन्नार इसे कहते हैं
अमानत लखनवी
ग़ज़ल
नज़ाकत रिश्ता-ए-उल्फ़त की देखो साँस दुश्मन की
ख़बरदार 'आरज़ू' टुक गर्म कर तार-ए-नफ़स खेंचा
ख़ान आरज़ू सिराजुद्दीन अली
ग़ज़ल
दिल वालों से बस पूछो है क्या रिश्ता-ए-उल्फ़त
तस्बीह से पूछो न ये ज़ुन्नार से पूछो
माहिर बिलग्रामी
ग़ज़ल
आज-कल ग़ैर से है तुझ को जो ऐ ज़ुल्म-पसंद
काश वो रिश्ता-ए-उल्फ़त तिरा पैमाँ होता
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
तरह सोज़न की जो हैं रिश्ता-ए-उल्फ़त में फँसे
जिस तरफ़ सैर करें रू-ब-क़ज़ा जाते हैं
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
क्यों रिश्ता-ए-उल्फ़त टूट गया क्यों हाथ से दामन छूट गया
किस तरह भुलाई याद तिरी वो आज भुलाना याद आया
पैकर जाफरी
ग़ज़ल
ताज-ए-ज़र के लिए क्यूँ शम' का सर काटे है
रिश्ता-ए-उल्फ़त-ए-परवाना को गुल-गीर न तोड़