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ग़ज़ल
रोज़ इक ताज़ा क़सीदा नई तश्बीब के साथ
रिज़्क़ बर-हक़ है ये ख़िदमत नहीं होगी हम से
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
रिज़्क़ मल्बूस मकाँ साँस मरज़ क़र्ज़ दवा
मुनक़सिम हो गया इंसाँ इन्ही अफ़्कार के बीच
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
ख़ुशा वो दिल कि सरापा तिलिस्म-ए-बे-ख़बरी हो
जुनून ओ यास ओ अलम रिज़्क़-ए-मुद्दआ-तलबी है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अल्लाह रे तेरी तुंदी-ए-ख़ू जिस के बीम से
अजज़ा-ए-नाला दिल में मिरे रिज़्क़-ए-हम हुए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जो बारिशों से क़ब्ल अपना रिज़्क़ घर में भर चुका
वो शहर-ए-मोर से न था प दूरबीं बला का था
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
जहान-ए-रिज़्क़ में तौक़ीर-ए-अहल-ए-हाजत क्या