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ग़ज़ल
रोक सको तो पहली बारिश की बूंदों को तुम रोको
कच्ची मिट्टी तो महकेगी है मिट्टी की मजबूरी
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
दिल की दुनिया हिलती है रोको अपनी नज़रों को
काफ़िर लूटे लेती हैं आज तजल्ली-ख़ाना भी
साग़र निज़ामी
ग़ज़ल
उठो 'अज़्म' इस आतिश-ए-शौक़ को सर्द होने से रोको
अगर रुक न पाए तो कोशिश ये करना धुआँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर इलाज-ए-सोज़-ए-ग़म कहने की बातें हैं
मिरा रस्ता न रोकें रास्ता लें चारा-गर अपना