aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rose"
क्या ज़माना था कि हम रोज़ मिला करते थेरात-भर चाँद के हमराह फिरा करते थे
रोज़ मुशाहिद रहते थे हम शाम तलकफिर सूरज का माथा चूमा करते थे
रोज़ अपना ही ख़ून पीता हूँऐसी कब थी दरिंदगी मुझ में
अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा करहम लोग बुरे लोग हैं हम से न मिला कर
इक चेहरे पर रोज़ गुज़ारा होता हैप्यार किसी को कब दोबारा होता है
बिछड़ गए थे किसी रोज़ खेल खेल में हमकि एक साथ नहीं चढ़ सके थे रेल में हम
दिया साक़ी ने अव्वल रोज़ वो पैमाना मस्ती मेंकि मैं ना-आश्ना पी कर हुआ दीवाना मस्ती में
जिस रोज़ से अपना मुझे इदराक हुआ हैहर लम्हा मिरी ज़ीस्त का सफ़्फ़ाक हुआ है
ख़ुद को जब ख़ुद से किसी रोज़ रिहाई दूँगीमैं परिंदों की तरह उड़ती दिखाई दूँगी
रोज़ इक बाग़ से गुज़रते हुएतुझ बदन का मुग़ालता लग जाए
लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैंपुराने दोस्त नया रूप धार सकते हैं
हर रोज़ ही इमरोज़ को फ़र्दा न करोगेवा'दा ये करो फिर कभी वा'दा न करोगे
वहाँ तो रोज़ सितारा नया चमकता हैयहाँ बस एक ही जुगनू है जो सिसकता है
चाँद में अक्स ढूँढती हूँ तिरारोज़ आँगन में मैं खड़ी तन्हा
वहम ही होगा मगर रोज़ कहाँ होता हैधुंध छाई है तो इक चेहरा अयाँ होता है
रोज़ जो मरता है इस को आदमी लिक्खो कभीतीरगी के बाब में भी रौशनी लिक्खो कभी
सारे यार बिछड़ जाएँगेरोज़ सितारे टूट रहे हैं
इक रोज़ जो गुलशन में वो जान-ए-बहार आएकलियों पे शबाब आए फूलों पे निखार आए
रोज़ कहता है मुझे चल दश्त मेंले न जाए दिल ये पागल दश्त में
रोज़ देने लगे आज़ार ये क्याऔर समझते हो उसे प्यार ये क्या
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