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ग़ज़ल
शेर किए मौज़ूँ तो ऐसे जिन से ख़ुश हैं साहिब-ए-दिल
रोवें कुढ़ें जो याद करें अब ऐसा तुम कुछ 'मीर' करो
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
आते ही रोए तो आगे को न रोवें क्यूँ-कर
हम तो हैं रोज़-ए-तव्वुलुद ही के दुख पाए हुए
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
एसी कहानी बिकट है इश्क़ काफ़िर की जो देखे
तो रोवें नुह फ़लक और चश्म हो जाँ उन की नौ नहरा
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
सहाब-ओ-बर्क़ हैं या शीशा-ओ-साग़र हैं क्या हम तुम
कि हम जिस वक़्त रोवें तुम हँसो उस वक़्त क़ह क़ह कर
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
किस किस अपनी कल को रोवे हिज्राँ में बेकल उस का
ख़्वाब गई है ताब गई है चैन गया आराम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
मिल कर रोएँ फ़रियाद करें उन बीते दिनों को याद करें
ऐ काश कहीं मिल जाए कोई जो मीत पुराना बचपन का
आनंद बख़्शी
ग़ज़ल
जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद
उस को क्या रोएँ जो मरता ही नहीं मरने के बाद
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
दम-ए-आख़िर इलाज-ए-सोज़-ए-ग़म कहने की बातें हैं
मिरा रस्ता न रोकें रास्ता लें चारा-गर अपना