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ग़ज़ल
न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
न मलाल रद्द-ए-दुआ का हो वही इश्क़ है
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
मेरे लहजे में जो ठहराव नहीं आया 'रोज़'
क्या मिरी तल्ख़ी-ए-हिजरत को नहीं जानते हो
रिज़वाना सईद रोज़
ग़ज़ल
रोज़-ए-जज़ा उमीद है सब को सज़ा मिले
इक़दाम-ए-क़त्ल में हैं मिरे सब हसीं शरीक
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़यामत आएगी या आ गई इस की शिकायत क्या
क़यामत क्यूँ न हो जब फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा तुम हो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़िराम फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा ब-ईं शोख़ी
तिरे ख़िराम के ओहदे से बर नहीं आती
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
सरगर्म है दिल शाफ़ा-ए-महशर की तलब में
काफ़िर हूँ अगर कुछ भी ग़म-ए-रोज़-ए-जज़ा है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
यहीं तय्यार हैं जो कुछ कहो जो हुक्म फ़रमाओ
हमारे जुर्म पर पाबंदी-ए-रोज़-ए-जज़ा क्यूँ हो
शौकत थानवी
ग़ज़ल
दिल ख़्वाह जला अब तो मुझे ऐ शब-ए-हिज्राँ
मैं सोख़्ता भी मुंतज़िर-ए-रोज़-ए-जज़ा हूँ
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
खटका नहीं है दिल में मिरे रोज़-ए-हश्र का
रहती है मुझ को शाफ़े'-ए-रोज़-ए-जज़ा की याद