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ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अब जा के कुछ खुला हुनर-ए-नाख़ुन-ए-जुनूँ
ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
चश्म ओ रुख़्सार के अज़़कार को जारी रक्खो
प्यार के नामे को दोहराओ कि कुछ रात कटे
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
दूद-ए-शम'-ए-कुश्ता था शायद ख़त-ए-रुख़्सार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़र इस हुस्न पर ठहरे तो आख़िर किस तरह ठहरे
कभी ख़ुद फूल बन जाए कभी रुख़्सार हो जाए
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
तेरे रुख़्सार से जब जब है गुज़रते आँसू
जिस्म-ओ-जाँ में मेरे जैसे है उतरते आँसू
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
एक रुख़्सार पे देखा है वो तिल हम ने भी
हो समरक़ंद मुक़ाबिल कि बुख़ारा कम है