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ग़ज़ल
पास-ए-नामूस ने फिर रुख़्सत-ए-रफ़्तन चाही
शोहरत-ए-हुस्न वही उल्फ़त-ए-रुस्वा है वही
ग़ुलाम भीक नैरंग
ग़ज़ल
शराब पी चुके बे-चारे को इजाज़त दो
खड़ा है देर से रुख़्सत को ऐ निगार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फूल मुरझाए हुए नब्ज़-ए-चमन अफ़्सुर्दा
रुख़्सत-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ है ग़ज़ल क्या कहिए
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
ग़ज़ल
सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री