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ग़ज़ल
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
हवा शाख़ों में रुकने और उलझने को है इस लम्हे
गुज़रते बादलों में चाँद हाइल होने वाला है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
बे-सदा साअ'तों में समा'अत की रफ़्तार रुकने को थी
एक आहट ने मुझ से कहा जाग जाओ ख़ुदा के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ज़रूरत क्या है रुकने की मिरे दिल से निकलता रह
हवस मुझ को नहीं ऐ नाला-ए-शब-गीर सोने की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
जहाँ रुकने लगे मेरे दिल-ए-बीमार की धड़कन
मैं उन क़दमों से थोड़ी सी रवानी माँग लेता हूँ
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
आप के शहर में पेड़ों का नहीं कोई शुमार
दो घड़ी रुकने को लेकिन कहीं साया न मिला