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ग़ज़ल
जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
अब तो बस जान ही देने की है बारी ऐ 'नूर'
मैं कहाँ तक करूँ साबित कि वफ़ा है मुझ में
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
जिस पे होता ही नहीं ख़ून-ए-दो-आलम साबित
बढ़ के इक दिन उसी गर्दन में हमाइल हो जाओ
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अच्छों को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है
इस मय को मुबारक चीज़ समझ माना कि बहुत बदनाम है ये
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
रक़ीबाँ की न कुछ तक़्सीर साबित है न ख़ूबाँ की
मुझे नाहक़ सताता है ये इश्क़-ए-बद-गुमाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
ख़्वाब था जो कुछ कि देखा जो सुना अफ़्साना था
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
ख़ुद को साबित करने से भी बढ़ जाती है तन्हाई
कौन सी गिर्हें खोल रहे हो सेहर-गरो चुप हो जाओ