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ग़ज़ल
कहा मैं ने बात वो कोठे की मिरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा कि जाने मिरी बला तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
शाम के रंगों में रख कर साफ़ पानी का गिलास
आब-ए-सादा को हरीफ़-ए-रंग-ए-बादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
शबीना अदीब
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
साफ़ अलग हम को जुनून-ए-आशिक़ी ने कर दिया
ख़ुद को तेरे दर्द का पर्दा समझ बैठे थे हम