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ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
साकिन हैं जोश-ए-अश्क से आब-ए-रवाँ में हम
रहते हैं मिस्ल-ए-मर्दुम-ए-आबी जहाँ में हम
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
हिसाब-ए-दर्द तो यूँ सब मिरी निगाह में है
जो मुझ पे हो न सकीं वो नवाज़िशें लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कौन रख सकता है इस को साकिन-ओ-जामिद कि ज़ीस्त
इंक़िलाब-ओ-इंक़िलाब-ओ-इंक़िलाब-ओ-इंक़िलाब
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इक अज़ाब-ए-मुस्तक़िल है फ़िक्र-ए-तामीर-ए-मकाँ
साकिन-ए-सहरा-ए-बे-दीवार-ओ-दर हो जाइए
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
दम-ए-मर्ग भी मिरी हसरतें हद-ए-आरज़ू से न बढ़ सकीं
उसी काले देव की क़ैद में मिरे बचपने की परी रही