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ग़ज़ल
मैं अक्सर मिर्च सालन में ज़ियादा डाल देती हूँ
किसी सूरत तो ज़ाहिर हो मिरी रंजिश मिरा ग़ुस्सा
शाज़िया नियाज़ी
ग़ज़ल
हज़ारों सर-फिरे सर आब-ए-सालन पर उठाते हैं
कभी तूफ़ान की ज़द में भी कोई बिलबिला ठहरे
जहूर बिस्वानी
ग़ज़ल
किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार
शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया