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ग़ज़ल
मेरी बातों में भी तल्ख़ी थी सम-ए-तन्हाई की
ज़हर-ए-तन्हाई में डूबी गुफ़्तुगू उस की भी थी
ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे
हम इन के मदह-ख़्वाँ सर-ए-बाज़ार क्यूँ न थे
वारिस किरमानी
ग़ज़ल
वो कहते हैं कि मैं ने आप सा सामे नहीं देखा
मैं कहता हूँ कि इतनी पुर-कशिश तक़रीर किस की है
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
सम-ए-इमरोज़ से मारा हुआ हारा हुआ दिन
किसी फ़र्दा की उमीदों पे बहलती हुई रात