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ग़ज़ल
शिकायत है मुझे या रब ख़ुदावंदान-ए-मकतब से
सबक़ शाहीं बच्चों को दे रहे हैं ख़ाक-बाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
सबक़ उम्र-ए-रवाँ का दिल-नशीं होने नहीं पाता
हमेशा भूलते जाते हैं जो कुछ याद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
हाँ कौन दर्स-ए-इश्क़-ए-जुनूँ का है ख़्वास्त-गार
आए कि हर सबक़ को भुलाए हुए हैं हम