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ग़ज़ल
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
'निज़ाम' उन की ख़मोशी में भी सदहा लुत्फ़ हैं लेकिन
जो बातें करते हैं तो मुँह से गोया फूल झड़ते हैं
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
बदल के दुनिया ने भेस सदहा इसे डराया उसे लुभाया
कभी ज़न-ए-पीर-ज़ाल बन कर कभी बुत-ए-शोख़-ओ-शंग हो कर
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
सदहा गहरी सोच में डूबी सदियाँ हम पर सर्फ़ हुईं
इक दो बरस की बात नहीं हम क़रनों में ता'मीर हुए
बशीर अहमद बशीर
ग़ज़ल
सुकून-ए-ख़्वाब-ए-फ़िज़ा, रंज-ए-राएगान-ए-उम्र
ज़यान-ए-बाइस-ए-सदहा ज़ियाँ तो कुछ भी नहीं
हादिस सलसाल
ग़ज़ल
तुम सजा देना खिले सदहा गुलाबों से मुझे
आख़िरी होगा तुम्हारा ये ही हर्जाना सनम