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ग़ज़ल
मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना
हटा कर मुझ को तुम मंज़र से पस-मंज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ
किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तेरे अब्र-ए-फ़ैज़ से ताज़ा है बाग़-ए-काएनात
क्या गुल-ए-आलम नसीम-ए-फ़ज़्ल से ख़ंदाँ हुआ
राधे शियाम रस्तोगी अहक़र
ग़ज़ल
हवा ओ अब्र को आसूदा-ए-मफ़्हूम कर देखूँ
शुरूअ-ए-फ़स्ल-ए-गुल है उन लबों को चूम कर देखूँ