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ग़ज़ल
दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते
चुप रहते हैं दुख सहते हैं कोई रंज-ओ-मलाल नहीं करते
वाली आसी
ग़ज़ल
क्या क्या जफ़ा-कशों पे हैं उन दिलबरों के ज़ुल्म
ऐसों के सहते ऐसे सितम ऐसे शख़्स हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
पत्थर मारने वाले इक दिन ख़ुद पत्थर हो जाते हैं
राह-ए-वफ़ा में जो सहते हैं पत्थर ज़िंदा रहते हैं
मुनव्वर हाशमी
ग़ज़ल
जब गुदगुदाते हैं तुझे हम और ढब से तब
सहते हैं गालियाँ तिरी ना-चार चार पाँच