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ग़ज़ल
दिलों को तोड़ने वालो तुम्हें किसी से क्या
मिलो तो आँख चुरा लो तुम्हें किसी से क्या
सैफ़ुद्दीन सैफ़
ग़ज़ल
'सैफ़' ये दर्द से मामूर ख़राबे दिल के
कितनी मुश्किल से बसाए हैं तुम्हें क्या मालूम