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ग़ज़ल
इशक़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
वो अजब दुनिया कि सब ख़ंजर-ब-कफ़ फिरते हैं और
काँच के प्यालों में संदल भीगता है साथ साथ
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
हम अपना ग़म लिए बैठे हैं उस बज़्म-ए-तरब में भी
किसी नग़्मे से अब 'मख़मूर' साज़-ए-दिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
वो हवाएँ वो घटाएँ वो फ़ज़ा वो उस की याद
हम भी मिज़राब-ए-अलम से साज़-ए-दिल छेड़ा किए