आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "saltanat-e-KHaak"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "saltanat-e-KHaak"
ग़ज़ल
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
नाम उर्दू का हुआ है इसी घर से ऊँचा
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
ये मिरे वजूद की सल्तनत है अजब ज़वाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
सर के ऊपर ख़ाक उड़ी तो सब दिल थाम के बैठ गए
ख़बर नहीं थी गुज़र चुका है मौसम अब्र-ए-नवाज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
पारसा हम-राह ले जाएँगे पिंदार-ए-अमल
हम तो अपने साथ उन की ख़ाक-ए-पा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
तन्हा जिए तो ख़ाक जिए लुत्फ़ क्या लिया
ऐ ख़िज़्र ये तो ज़िंदगी में ज़िंदगी नहीं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर चूर
इस वाक़िआ की ख़ाक है पत्थर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
कूचा-ए-इश्क़ की सच पूछो तो हम ने 'परवीं'
किस क़दर ख़ाक उड़ाई है इलाही तौबा
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़ियादा आईने से है मुनव्वर मुसहफ़-ए-आरिज़
और इस पर ख़ाल-ए-मुश्कीं आया-ए-ततहीर की सूरत