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ग़ज़ल
कुछ हरम में कुछ सनम-ख़ानों में दीवाने गए
होश थे जिन के सलामत बस वो मय-ख़ाने गए
सुल्तान शाकिर हाश्मी
ग़ज़ल
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
दिल-ए-ज़िंदा तिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
वो जो छुप जाते थे काबों में सनम-ख़ानों में
उन को ला ला के बिठाया गया दीवानों में
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
राहें शहरों से गुज़रती रहीं वीरानों की
नक़्श मिलते रहे काबे में सनम-ख़ानों के
मुख़्तार सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-आदम ने 'फ़लक' होश सँभाला जिस दम
सब से पहले रखी बुनियाद सनम-ख़ानों की
हीरा लाल फ़लक देहलवी
ग़ज़ल
मिल गए हम को सनम-ख़ानों में कितने ही ख़ुदा
ढूँडने पर कोई बंदा ही ख़ुदा का न मिला
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
उस के बंदों में उसे ढूँढ अगर है ख़्वाहिश
वो सनम-ख़ानों के दर पर कभी दिखता ही नहीं
बबल्स होरा सबा
ग़ज़ल
किस क़दर फ़ितरत-ए-बेबाक की ख़ू बदली है
अज़्म-ए-महमूद लरज़ता है सनम-ख़ानों से