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ग़ज़ल
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं