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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस की आवारगी को दु'आएँ दो ऐ साहिबान-ए-जुनूँ
जिस के नक़्श-ए-क़दम ने बिछाए सर-ए-रहगुज़र आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ