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ग़ज़ल
खुल कर न सर-ए-आम हो इज़हार भले ही
है बुग़्ज़ करें हम से वो इंकार भले ही
अज़ीमुद्दीन साहिल साहिल कलमनूरी
ग़ज़ल
हालत-ए-क़ल्ब सर-ए-बज़्म बताऊँ क्यूँकर
पर्दा-ए-दिल में है इक पर्दा-नशीं का लालच
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
दिल में तीर-ए-इश्क़ है और फ़र्क़ पर शमशीर-ए-इश्क़
क्या बताएँ पड़ गई है पाँव में ज़ंजीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ऐ ज़ुल्फ़ फैल फैल के रुख़्सार को न ढाँक
कर नीम-रोज़ की न शह-ए-मुल्क-ए-शाम हिर्स
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मैं चुप रहूँ तो गोया रंज-ओ-ग़म-ए-निहाँ हूँ
बोलूँ तो सर से पा तक हसरत की दास्ताँ हूँ