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ग़ज़ल
तुम सर-ए-दश्त-ओ-चमन मुझ को कहाँ ढूँडते हो
मैं तो हर रुत में बदल देता हूँ पैकर अपने
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अब भी है हम को अहल-ए-चमन बस उन्हीं से प्यार
इस दिल को बार बार दुखाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल क्या मुझे