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ग़ज़ल
बदीउज़्ज़माँ सहर
ग़ज़ल
जो इंसाँ बारयाब-ए-पर्दा-ए-असरार हो जाए
तो इस बातिल--कदे में ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
पर्दा-ए-हुस्न-ए-ज़ात में अंजुमन-ए-सिफ़ात में
मेरे सिवा है और कौन सीना-ए-काएनात में
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
पर्दा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब में जो सहर देखते हैं
दीदा-वर हैं वो पस-ए-हद्द-ए-नज़र देखते हैं