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ग़ज़ल
बे-नियाज़ी को तिरी पाया सरासर सोज़ ओ दर्द
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
इश्क़ का रस्ता सरासर है दम-ए-शमशीर पर
बुल-हवस इस राह में रखना क़दम क्या सहल है
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सरासर ताख़तन को शश-जिहत यक-अर्सा जौलाँ था
हुआ वामांदगी से रह-रवाँ की फ़र्क़ मंज़िल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या बात थी कि क़िस्सा-ए-फ़रहाद-ए-कोहकन
अपनी ही दास्तान-ए-सरासर लगा मुझे
अकबर अली खान अर्शी जादह
ग़ज़ल
सरासर ज़ुल्म है इस बात में तुम से गिला मेरा
रिदा रक्खो जिसे तुम फिर वो ज़ुल्म-ए-ना-रवा क्यूँ हो
शौकत थानवी
ग़ज़ल
सुंबुलिस्ताँ हैं मिरी जान सरासर ज़ुल्फ़ें
रुख़-ए-गुल-रंग से गुलज़ार नज़र आते हो