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ग़ज़ल
कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते
महबूब ख़िज़ां
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुझे महसूस होती है तुम्हारे लम्स की गर्मी
मुझे सर्दी में सुलगाएँ ये तासीरें दिसम्बर की