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ग़ज़ल
गर रंग भबूका आतिश है और बीनी शोला-ए-सरकश है
तो बिजली सी कौंदे है परी आरिज़ की चमक फिर वैसी ही
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
वो क़दम क़दम पे लग़्ज़िश वो निगाह-ए-मस्त साक़ी
ये तराश-ए-ज़ुल्फ़-ए-सरकश ये कुलाह-ए-कज-निहादा
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
अगर इतनी ही सरकश है तो मुझ पे क्यूँ नहीं गिरती
वही बिजली जो मेरा घर जला कर लौट जाती है
इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
खेल है सरकश हवाओं के लिए मेरा वजूद
कम-तनाबी जिस की क़िस्मत है वो इक ख़ेमा हूँ मैं
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
खिल रहे हैं मुझ में दुनिया के सभी नायाब फूल
इतनी सरकश ख़ाक को किस अब्र ने नम कर दिया
नोमान शौक़
ग़ज़ल
कितनी सरकश भी हो सर-फिरी ये हवा रखना रौशन दिया
रात जब तक रहे ऐ मिरे हम-नवा रखना रौशन दिया