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ग़ज़ल
दरवाज़े खिड़की मुझ पे 'मुसव्विर' हैं सब ही बंद
सरमा का ठिठुरा चाँद है और शब तवील है
मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल
वुसअत-ए-शहर-ए-तंग-दिल सरमा की सुब्ह-ए-सर्द में
जागी है डर के ख़्वाब से सूरत-ए-फ़क़ीर के सबब
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
सच्ची हैं ये रिफाक़तें बाक़ी हैं सब कहानियाँ
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
बे-ज़रूरत ख़ुश नहीं आती जहाँ में कोई चीज़
फ़स्ल-ए-सरमा में नहीं होती गवारा चाँदनी
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
गर्मी से मिरे दिल की इस मौसम-ए-सर्मा में
ये गुम्बद-ए-गर्दूं भी यकबार लगा तपने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तुख़्म में रोईदगी हर नख़्ल में बालीदगी
मौसम-ए-सरमा-ओ-गरमा बाद-ओ-बाराँ अब भी है