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ग़ज़ल
ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअ'त-ए-अफ़्लाक
करम है या कि सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ता नहीं जो खिले फूल राह-ए-सरसर में
ये जुर्म है कि वो फ़िक्र-ए-मआल रखते थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
दिल ओ दीं नक़्द ला साक़ी से गर सौदा किया चाहे
कि उस बाज़ार में साग़र माता-ए-दस्त-गर्दां है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हो सरसर-ए-फ़ुग़ाँ से न क्यूँकर वो मुज़्तरिब
मुश्किल हुआ है पर्दा-ए-महमिल को थामना
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
जब सर में हवा-ए-ताअत थी सरसब्ज़ शजर उम्मीद का था
जब सर-सर-ए-इस्याँ चलने लगी इस पेड़ ने फलना छोड़ दिया