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ग़ज़ल
शायरी में 'मीर' ओ 'ग़ालिब' के ज़माने अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
मौत मिले तो मुफ़्त न लूँ हस्ती की क्या हस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
वो जिंस-ए-दिल की क़ीमत पूछते हैं मैं बताऊँ क्या
यही महँगी सी महँगी है यही सस्ती सी सस्ती है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
सारी उम्र गँवा दी 'क़ैसर' दो गज़ मिट्टी हाथ लगी
कितनी महँगी चीज़ थी दुनिया कितनी सस्ती छोड़ चले
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
मोहब्बत ज़िंदगी है ज़िंदगी का नाम मस्ती है
अगर मस्ती न हो तो ज़िंदगी मिट्टी से सस्ती है
क़मर अंजुम
ग़ज़ल
ये सस्ती लज़्ज़तों सस्ती सियासत के पुजारी हैं
हमें अहबाब का सौदा-ए-ख़ाम अच्छा नहीं लगता